Thursday, December 06, 2007

babri masjid kaand

आज इस बात को १५ साल हो गए हैं. क्यूंकि ये मुद्दा लोगों के जेहन मैं फीका पड़ चूका है इसलिए हमारे नेता ( जो दरअसल प्रेता हैं ) कुछ नही कह रहे हैं सिवाय लोकतंत्र का चक्का जाम करने के। ये टोकरी मैं पड़े उन केक्डों कि तरह हैं जो न तो खुद बाहर निकालेंगे न ही किसी और को निकलने देंगे ।

उस समय जब ये बवाल हुआ था मैं काफी छोटा था । हालांकि गुजरात के दंगों के बारे मैं कहा जाता है कि टी वी पर समाचार द्वारा व्यर्थ मैं प्रचार हुआ पर मुझे अछे से याद है इस काण्ड मैं मस्जिद के ढहाने की विडियो कैसेट हर घर में देखे गए थे । इन तस्वीरों मैं से एक तस्वीर मेरे जेहन मैं घर कर गयी, वो ठी दिखने मैं कमज़ोर एक बुजुर्ग आदमी कि जो भीड़ से कहीं आगे आकर पुलिस कि लाठी चार्ज के सामने सीना ताने दौड़ने लगा और पास मैं पड़ा एक बड़ा सा ईट उठा के फेंका । उसके चेहरे मैं एक गज़ब का आक्रोश और पीड़ा नज़र आ रही थी । धर्म के नाम पर आदमी क्या नही कर सकता ये मैंने उस आदमी कि आँखों मैं देखा था ।

हमारी कानून व्यवस्था और पुलिस कि जांच प्रणाली के बारे मैं क्या कहा जा सकता है जब १२ साले बाद आरोपी को न्यायालय मैं लाया जाता है और १५ साल बाद एक साक्षी मिलता है ! जब कुछ ऐसा पड़ता या सुनता हूँ तो फ्रान्ज़ काफ्का कि लिखी ये कहानी 'before the law' याद आती है। आशा करता हूँ इस जन्म में इस मुक़दमे का नतीजा देख सकूं ।

5 comments:

desh said...

u sounded so grish-shobha-ish

amazing the way hindi papers cover incidents, they just bring out so much emotions, will never forget navbharat and dainik bhaskar :)

btw even i remember tht buddha uncle doing the act

desh said...

sorry it was grih-shobha-ish (grihshobha a hindi daily)

TheQuark said...

लोल !
क्या गृहशोभा इसलिए बोल रहे हो की हिन्दी मैं लिखी या फ़िर भाषा अथवा शैली ?
तुम अगला पोस्ट गृहशोभा और उसमे जो पाठक समस्या लिख के भेजते हैं उसपे लिख सकते हो

and do add that india tv thing

btw i am searching for rakhi sawant and prabhu chawla interview in seedhi baat. I had found a link on youtube but it stated that video was removed :(

His big daddy antics with nisha kothari are amusing not hilarious though

Surrendered Emotions said...

hum bahut sari cheezon ki aasha karte hain ... magar there were / are so many variables in the society where the sopciety itself is HUGE and growing in enormous proportions, it becomes difficult for even the fastest people in the government to take decissions which are effective and are not manipulated even with the least of the variables!

On a serious note, Wish we could make a difference but of what i see - we the people - are much happy in marrying and adding to the population rather than literally devoting lives for the cause!

(Of recent i have been studying that people who have really made a difference are those who have devoted each day of their life for the casue - irrespective of the field.)

TheQuark said...

@surrendered emotions: So should we stop hoping and doing anything? Tell me which society is not huge? It is a systemic failure that I am talking of.

If by we you mean the bourgeoisie then that is all that they do and they have been doing. Society needs stability by these people. Everyone can't be and need not be revolutionary.

We don't want a thousand Narayan Murthy (or any one else who has made a difference). Just pay your taxes and try living without breaking laws and without corruption (at least not in every step of your life) is what a majority of our junta is supposed to do.