Monday, August 24, 2009

समलैंगिक कुक्कुर और बाबा बामदेव का उपचार (प्रहार)

सुनने में आया है की विदेश की कलाकारा geri haliwell के कुत्ते समलैंगिक निकले! तो अब आधुनिक ख्याल के लोग कहेंगे इसमे क्या बड़ी बात है | पर हमारी संस्कृति ये सब allow नही करती | समलैंगिकता एक विदेशी विकृति है और हमारी संस्कृति को खा जायेगी अगर इसको रोका न गया| दरअसल भारतीय संस्कृति हिन्दी फ़िल्म के हीरो की उस बहिन के समान है जिसकी अस्मत लूटने को फिरंगी लुटेरे, भ्रष्ट नेता और दुष्ट गुंडे सदा कोशिश करते रहते हैं और बचाने वाले हैं समाज के तमाम ठेकेदार जो भारतीय संस्कृति को "बचाने" का कोई मौका नही छोड़ते | एक पुरूष दूसरे पुरूष से प्यार करे ये हमें गवारा नही क्यूंकि ये natural नही है | हाँ बड़े बड़े बाँध बनाना, सैकडों मंजिलों की इमारतें बनाना ये सब natural है | अजी साहब जब हम एक पुरूष और स्त्री के प्यार को ही नही झेल सकते तो पुरूष-पुरूष (या नारी नारी) का प्यार क्या चीज़ है

मैं सुश्री halliwell से आग्रह करता हूँ की अपने प्यारे टामी (या जो भी उन कुक्कुर श्रेष्ठ का नाम हो) को बाबा बामदेव के पास ले जाए | बाबा बामदेव जब अपनी योग विद्या से बड़े बड़ों को straight रस्ते पे ला सकते हैं तो क्या कुत्तों का योग से भला नही हो सकता? (सुश्री पैरिस हिल्टन यदि आप सुन रही हैं तो कुत्तों के कपड़े के बाद कुक्कुर योग धाँसू आईडिया है)| after all man ij aalso e sosal animal

Wednesday, August 19, 2009

कायावती को पत्र

प्रीय जगत बहन सुस्री कायावती,

आपकी माया और काया दोनों महान है | रक्षाबंधन का दिन आया और चला भी गया और आपके अनेक भैय्यों में किसी ने आपकी सुध भी न ली | यों तो इस पर्व पे बहने अपने भाइयों की सलामती की दुआएं मांगती हैं पर आपके सब भैय्ये इस दिन आपसे सलामती की दुआएं मांगते हैं | पूरा देश राखी के स्वयंवर में इतना मशगूल हुआ की आपके बारे में किसी ने न सोचा, आख़िर आपके लाल हाथों को पीला करना आपके भैय्यों का ही फ़र्ज़ बनता है| जगत कल्याण और शिलान्यास से आपको समय नही मिलता और इस बेदर्द दुनिया और जालिम समाज ने आपके 'मुलायम' दिल को कठोर बना दिया है जो आप अपने बारे में सोचना भूल गई| राखी के स्वयंवर के बाद भारतवर्ष को एक और सच का सामना करना चाहिए, कौन होगा वो बांका 'सुवर' जो हाथी पर सवार होकर आयेगा और बहन कायावती के चरण पकड़ के हाथ थाम लेगा? मैं माननीय टीवी चैनल वालों से आग्रह करता हूँ की एक और वास्तविकता शो बनाया जाए - "कौन बनेगा कायावती का पती"

आपका
क्वार्क

Sunday, August 16, 2009

सोफिया का स्वयंवर

तो बात ये है की हमारे पड़ोस में एक आंटी जी हैं जिन्होंने guinea pig और खरगोश पाल रखे हैं जो बाग़ में खूब अठ्खेलियां करते हैं | खरगोश थोड़ा नई है तो guinea pig उसका तिरस्कार करके भगा देते हैं, तो अब उस अकेली बेचारी मायूस खरगोश के लिए एक जीवन साथी ढूँढा जा रहा है, जीवनसाथी डाट काम पे क्या इंसान छोड़ा और जानवरों का भी मेल होता है? होता हैं तो वहाँ तो देखा ही जाएगा पर पाठकों से निवेदन है की उनकी नज़र में कोई सुंदर, सुशील, अच्छी कद काठी वाला झबरीला बांका नर खरगोश हो तो एक ठो फोटू (और bio data) सहित हमे contact करें|

आपके लिए सोफिया की फोटू हाजिर है



अंकल जी की कितनी सेवा करती हैं ये तो पता नही पर खरगोश के दिल की धड़कनें तो आंटी को दूर दूर तक सुनाई दे जाती है, उसकी वो सूनी विरह की वेदना से लिप्त आँखें बर्दाश्त के बाहर है| जब उनके रख रखाव और साफ़ सफाई के बारे में पूछा गया तो पता चला मादा खरगोश तो बहुत साफ़ रहती है, guinea pig भी वैसे तो साफ़ ही रहते हैं पर कभी कभार आंटी को उनके पिछवाडे पानी से धोने पड़ते हैं! क्या विडम्बना है आदमी अपने पिछवाडे तो सादे कागज़ से पोंछता है और अति प्रीय guniea pig को मिलता है सिर्फ़ पानी! खैर राखी को तो उसका जीवन साथी मिल ही गया है देखते हैं बेचारी मादा खरगोश को उसका मन चाहा वर मिलेगा की नही

Update:
पाठकों को ये बताते हुए बड़ी खुशी हो रही है की सोफिया का जीवन साथी ढूँढ लिया गया है, गोरा चिट्टा सा एक handsome नर खरगोश जिसकी आँखें नीली नीली हैं और नाम है सिम्बा, विडम्बना का कोई अंत नही खरगोश का नाम सिम्बा! सोफिया और सिम्बा दोनों आधुनिक ख्यालों के हैं तो पाठक अभी शादी की आस न बाधें अभी उन्हें एक दूसरे के बारे में जानना है, शादी तो होती रहेगी

Sunday, August 09, 2009

जर्मनी में बाल कटाई बड़ा रंग लाई

तो भई मियाँ क्वार्क पहुंचे बाल कटवाने वो भी किसी ऐरे गैर नउव्वेसे से नही एक जर्मन barber से | स्विट्जरलैंड में तो बाल छूने के भी पैसे, पैसे नही फ्रँक लगते हैं और बाल कटवाने हो तो पता नही कितने फ्रँक ले लेते हैं | इतने तो लगते ही हैं जितने में आप अपने देस में साल भर बाल कटवा सकते हैं (चम्पी सहित) | इसका कारण सिर्फ़ forex रेट नही है पर इन देशो में जहाँ manual labor की कमी है जिस भी चीज़ में परिश्रम की जरूरत पड़ती है वो यकायक महंगी हो जाती है | खैर economic ज्ञान छोडिये, हम तो सपने ले कर गए थे की इतने सारे पैसे दे रहे हैं जरूर सोने की कैंची से बाल कटते होंगे | कमबख्त हमे क्या पता था की सब काम मशीनी होगा | जिस खोपडे को देसी कैंचियों, चमाटदार चम्पी और सुगन्धित तेल की आदत थी उसे तो मशीनी कटाई गुदगुदी ही लग रही थी |

पर मरता क्या न करता भई बाल बड़ा के भालुओं में गिनती भी तो नही करा सकते, किसी extinct होती species से मेल खा गए तो जू में बंद कर लेंगे वो भी जर्मन जानवरों के साथ | तो बैठ गए कुर्सी में चालु हो गई कटाई (जी हाँ कटाई सही शब्द है किसी खेत की कटाई से कम नही थी हमारे ज़ुल्फिकाओं की कटाई) | जब style के बारे में पूछा गया तो हमने मुहँ से बोल तो दिया की "छोटे" पर मन ही मन कहा की ऐसा काटो ऐसा काटो की २ महीने तक फ़िर तुम्हारे यहाँ कटवाने न आना पड़े | मजेदार बात तो ये हुई की कलम अर्थात sideburn की कटाई में हमसे पूछा गया की क्या १ cm काफ़ी रहेगा ! "अरे क्या फट्टा लगा के काटा जाएगा ?!" यही सोच के हमने मन ही मन ठहाके लगा लिए और अपना कपार barber के हवाले कर दिया, समझो की तुम पिकास्सो या डा विन्ची जैसे कोई महान कलाकार और मैं एक खाली कैनवास भर दो जिस रूप रंग में एक महान कृति बन जाए (बस बाल छोटे काटना) | बाकी सब तो ठीक था पर अपने देसी नउव्वे की तरह न तो मुफ्त की फिल्मी मैगजीन पड़ने को मिली और न ही समाज और राजनीति की संगीन चर्चा | बस थमा आए दोनों - euro और बाल एक मीठे से दांके के साथ|

Saturday, August 08, 2009

इम्तिहान की घड़ी

तो जैसा की पहले भी होता आया है आज फ़िर एक उबाऊ इम्तिहान की तैय्यारी के बीच में एक पोस्ट लिखा जाएगा| अब कोई नया विषय तो मिल नही रहा तो इम्तिहान पे ही ब्लॉग लिख देते हैं :) | हिन्दुस्तानी में जिसे इम्तिहान कहते हैं उसका अंग्रेज़ी शब्द बड़ा अच्छा है examination अर्थात आपको examine किया जा रहा है| Laboratory के किसी चूहे या मेंडक की तरह आपका test या आपके ऊपर test किया जा रहा है जिसका जानलेवा नतीजा जल्द ही पता चल जाएगा |

Exam में भी अपने देश का कोई टक्कर नही है भाई | जब इम्तिहान का मौसम आता था तो मानो यूं लगता था की पूरी कायनात का exam है, दस कमरे छोड़ के भी कोई गाना चला रहा हो तो उसे बंद करा दिया जाता था| किताबों, कॉपियों और कलम का बाज़ार गरम हो जाता था और तमाम प्रकार के टोटके लगाये जाते थे, जैसे कौन सी shirt lucky है और कौन सी कलम करामाती| जिन्होंने ने कभी मेहनत कर मटकी न फोडी वो इम्तिहान फोड़ने की बात करते थे | गणित की परीक्षा न भी हो तो भीषण गणित लगती थी, किसने assignment में कितने अंक बना लिए हैं, अव्वल दर्जा पाने के लिए कितने और की जरूरत है| मेहनत करने का कोटा तो सीमित है तो किस विषय में कितना समय ख़राब किया जाए ऐसी ही रणनीतियों और अटकलों की गर्मी हर तरफ़ देखी जा सकती थी |

पर एक महाशय मेरे कमरे के करीब ही कहीं रहते थे और रोज परीक्षा को 'फोड़ने' के बजाये परीक्षा से फूट के आते थे और फूट फूट के linkin park का एक ही गाना बजाते थे - I tried so hard and got so far. अरे मियां हमे बताने की क्या जरूरत है हम कौन सा कद्दू में तीर मार के आते थे| जिन छात्रों ने साल भर कुछ पड़ लिया होता था उनकी मांग सेंसेक्स की तरह बढ जाती थी और मुहँ छोड़ सब रातें काली करने में जुट जाते थे |

स्कूल में तो इम्तिहान का सीधा हिसाब होता था की भाई कॉपी और किताब उठाओ पहले से आखरी chapter तक अभ्यास कर लो पर college में तो अलग ही रंग देखने को मिलते थे | विषय छोड़ के लोगों प्रोफ़ेसर के चरित्र और मनोविज्ञान का विश्लेषण करते थे | कौन सा प्रोफ़ेसर किस प्रकार के सवाल देता है उसके कैसे जवाब लिखने होंगे और यदि जवाब नही आते हो तो क्या लिखना चाहिए ये सब सोचने में पड़ने का वक्त किसे मिलेगा | सबसे बढ़िया छात्र होते थे जिन्होंने जन्म तो मनुष्य योनी में लिया पर आसार काम देव के वाहन की तरह थे - अर्थात तोता| एक महानुभाव तो एक धार में ऐसा रट्टा लगाते की शब्दों सहित comma, full stop. diagram number और यहाँ तक की appendix भी घोंट के पी जाते थे |

अब इस स्विस नगरी में भी इम्तिहान हैं, laboratory ke चूहे समान परीक्षण है पर हॉस्टल वाली वो बात नही है जहाँ आपको अपने साथी चूहों को इम्तिहान फोड़ते हुए देखकर कोफ्त हो सकती थी, या बगल वाले दडबे के चूहे की हालत देख कर आप ये सोच सकते थे की चलो चूहा दौड़ में मैं इसके तो आगे हूँ | छुरी के नीचे काटना तो है ही तो साथ में कौन कौन कैसे काटने वाला है ये जान के ढाढ़स बाँध नही पाता| तो बस इस ही बात पे एक पुराना गाना याद आ गया - "तुम पुकार लो":

दिल बहल तो जाएगा इस ख्याल से
हाल मिल गया तुम्हारा अपने हाल से