Wednesday, May 27, 2009

Genius and Intuition

Following is an article I had written for Petals, a portal for self expression at my first job

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Intuition though quite an inexplicable phenomenon yet attracts attention from scientists, mystics and laymen alike. I will take intuitions in the context of geniuses with specific reference to Ramanujam as portrayed in a biography aptly named "The Man who knew Infinity".

The book attempts to take a holistic view of Ramanujam's life, his early years, dominant yet caring mother, his leaning, place in which he lived, the soil on which he walked on. It attempts to describe an oriental mystic and genius meeting the renowned eccentric mathematician Thomas Hardy. This is a recurring theme and comes up in subtle ways, clearly chalking out a line between east and west.

Second aspect of the book is the chasm in which the book is written. This chasm is the view of phenomenon of intuition as seen by the Orient and the Occident. The divide overshadows any other perspective of events described in the book.

Where did Ramanujam's magical intuition come from? Was his work a fluke (though a string of flukes, if this is true)? Was it because of his religious beliefs as he used to claim? We are not answering these questions, for the questions and asking of these questions is what matters to us here.

In his prolific book "The Argumentative Indian" written by Nobel laureate Prof. Amartya Sen also discusses this aspect in a different manner and slightly different context. Prof. Sen takes example of Indian mathematician namely Aryabhatta and Varahmihira. Their work and source of inspirations in some or the other ways were always likened with their religious beliefs. The point is not whether their religion beliefs made an impact or not. The point which he puts forth is why this question is asked only in cases of oriental thinkers.

In Ramanujam's case, the interest in mystic gets accentuated because he himself told appearances of goddess Namagiri, who informs him all the solutions which became humongous feats in mathematical intellect. He had a deep interest in astrology – not as an amateur, nor a practitioner, but as a serious pursuit which is evident in the prediction of his early death made by himself.

Ramanujam was a strange dichotomous character for the west. A religious, mystic genius in mathematics who worked on intuition rather than rationale, his works were flights of fancy. Flashes of intuitions, boisterous mathematical claims without a proof at hand were commonplace with him. Though many of his claims finally proved to be wrong, the ones that were right, proved to be prolific.

His life also gave a picture of colonized India, where a genius of his stature had no formal education to make him eligible for research work. His brilliance was scoffed off in his own land and would be recognized truly, albeit with apprehension in west.

Monday, May 25, 2009

मानोगे नहीं ...

भौतिकी (physics) एक ऐसा विषय है जो हमे हमेशा से भाता रहा है | क्या आपने शाखा से गिरे सेब से विज्ञानं की नयी शाखा निकलते देखी है?! भौतिकी के दाहिने हाथ के खेल का किस्सा तो हम सुना चुके हैं, और हिंदी भाषा वाला भी | यह किस्सा कुछ और है | बात है CBSE board के इम्तिहान की जिसका कुरुक्षेत्र शहर से थोडा दूर था तो हम सब छात्र एक ही बस में जाते और आते थे | कुछ हम थे जो समीकरणों (equations) और सूत्रों (formulas) में सर फुडाते रह गए और कुछ वो थे जिन्होंने भौतिकी को भगवान् से मिला डाला ! नहीं नहीं हम श्रीमान भूरे (dan brown) के सहपाठी नहीं रहे | da vinci छोडिये ये तो angel, demon के बाप तक पहुँच गए |

इन महानुभाव का एक जुमला हुआ करता था "भाई .... तुम मानोगे नहीं ....." (अरे बंधू जब तुम्हे पता है की हम नहीं मानने वाले हैं तो बता काहे रहे हो! खैर ये बात तो किसी और मुद्दे की है...) | तो भौतिकी की परीक्षा ख़तम हुई और छात्रों का काफिला सवालों और उनके जवाबों में उलझा, मध्हम कदमों से आगे बढ ही रहा था की किसी ने उन महानुभाव से पूछ ही लिया "यार कैसी हुई तुम्हारी परीक्षा" बस फिर क्या था उन्होंने वह महान शब्द कह डाले "की आज तो यदि ब्रम्हा जी भी नीचे उतर के बोल दे की बेटा तुम पास हो गए हो तो में कहूँगा..... आप झूठ बोल रहे हैं"!

(अपने ही बनाए माटी के पुतले के इतने अटूट विश्वास को परमपिता ब्रम्हा भी कैसे झुठला सकते थे तो ....)

Sunday, May 17, 2009

हिंदी कक्षा के व्यंगात्मक वाक़ये

तो मुद्दा ये है की हमारी पाठशाला में शिक्षकों को रचनात्मकता और नवाचार भाता न था | बात है हिंदी परीक्षा की जिसमे प्रश्न आते थे वही घिसे पिटे स्त्रीलिंग से पुल्लिंग और विपरीत | तो एक महानुभाव को जब भगवान का लिंग बदलना था (तिरस्कारी और असंभव काम है जानता हूँ) तो महाशय का जवाब रहा मादा भगवान | शिक्षिका ने उस छात्र को महात्मा के खिताब से तो नवाजा पर अंक न दिए |

दूसरा वाक़या भी हिंदी कक्षा का ही है, दूसरे किस्म के घिसे पिटे सवाल आते थे दिए गए एक शब्द पे वाक्य बनाने के | अब कई ऐसे क्लिष्ट शब्द आते थे की बच्चों के हाथों से तोते उड़ जाते | मसलन एक शब्द आया विहंगम | अब विहंगम किस चिडिया का नाम है इसकी तो आधे से ज्यादा लोगों को हवा भी न थी | फिर क्या लोगों का रचनात्मकता दिमाग चल गया | एक राम बाण वाक्य निकाला गया जो सब दुःख दूर कर दे | भाई किसी भी संज्ञा का लिंग बदलने के लिए वह संज्ञा नर है की मादा इतना तो पता ही होना चाहिए पर ऐसी कोई भी बाधा इस राम बाण वाक्य में न थी | और वह महान वाक्य था "विहंगम एक अच्छा शब्द है" | कुछ छात्र तो यहाँ तक न रुके उन्होंने सवाल को ही जवाब बना डाला और स्याह अक्षरों में लिखा "शिक्षिका ने विहंगम पे वाक्य लिखने को कहा" | इस वाक्य ने तो शिक्षिका को अवाक कर दिया | अब इस बात को झुठलाया तो नहीं जा सकता की शिक्षिका ने वाक्य लिखने को कहा है, ये तो अटूट सत्य है और इस वाक्य में आवश्यक शब्द भी है तो वह शिष्य को पुरस्कार में भारत की खोज शून्य तो भेंट दे नहीं सकी हाँ कक्षा में निवेदन जरूर किया की ऐसे वाक्य लिखिए जिनसे शब्द का अर्थ उभर के आये और मन मसोस कर आधे अंक दिए|