Wednesday, October 21, 2009

नाटकीय रूपांतरण

बहुत कम ऐसा होता है जब आपके कॉलेज के अनुभव आपको पाठशाला की याद दिलाये | जिस lecture में मैं फिलहाल बैठा हुआ हूँ वो शिक्षिका पड़ा तो रही है innovation के बारे में किन्तु पड़ रही हैं एक पहले से लिखे मूलपाठ द्वारा किसी नाटक के अभिनय माफिक| यह देख कर अपने पुराने रसायन शास्त्र (chemistry) के शिक्षक की याद आ गयी जो एक guide book से पढाया करते थे | बच्चों को पता न चल जाये तो सन सत्तर के किसी अख़बार का cover लगा के आते थे | पर आप तो जानते हैं, बच्चा भगवान् का रूप होता हैं और इतने सारे भगवानों से कहाँ कुछ छुप सकता है, एक चतुर बालक ने सारी किताबे छान मारी और वो किताब खरीद कर क्लास के एक कोने में बैठ जाता| बस फिर क्या शिक्षक महाराज दनादन, line by line किताब से पढाते रहते और लड़का line by line underline करता रहता :D

6 comments:

Amit said...

हिंदी में ऐसा किस्सा पढने का मज़ा ही अलग है.
वैसे यह उपक्रम आपने अच्छा चालू किया है...
गोरो के देश में हिंदी प्रचार का :)

TheQuark said...

हाँ अपनी भाषा में पड़ने, लिखने सुनने सुनाने का अलग ही स्वाद आता है | प्रचार करना मेरा मकसद नहीं है, हो जाये तो बढ़िया है वरना अपने चंद पाठकगण तो हैं ही

desh said...

ek time tha jab underline naa karne waale ko gadha maana jaata tha

btw David in Chupke Chupke said, bhasha apne aap main itni MAHAAN hoti hai, ki uska durachaar/prachaar ityaadi nahi kiya jaa sakta :)

TheQuark said...

@Desh: Haan wo log bade hokar marker chalaane lage hain :D

David (jo golmal mein ratna ko room se bhaga diya karte the) ne kaha tha ki bhasha ka mazak nahi parimal to ek admi ka mazak uda raha hai. Bhasha to apne aap mein itni mahaan hai uska mazak nahi udaya ja sakta

DEVESH said...

Who was this time management genius? Was he from your section? My trick in Bhasin sir's class was to write without writing at all!

TheQuark said...

@DEVESH: I wont't name names here so we can discuss the aforementioned esteemed classmate of ours off the social media.

BTW I don't remember having any tricks in the class, they were so sleep inducing, the teacher himself looked like he came in while walking in his sleep.